बॉम्बे हाईकोर्ट: खुशियों के लिए भी पैरोल का मौका
मुंबई, 9 जुलाई: बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक पैरोल याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि दुख बांटने के लिए पैरोल मिल सकता है, तो खुशियों के लिए भी बराबर के अवसर मिलने चाहिए।
अदालत विवेक श्रीवास्तव नामक एक कैदी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जो आजीवन कारावास की सजा काट रहा है। श्रीवास्तव ने अपने बेटे की ऑस्ट्रेलियाई विश्वविद्यालय में पढ़ाई के लिए ट्यूशन फीस और अन्य खर्चों का इंतजाम करने और उसे विदाई देने के लिए पैरोल की मांग की थी।
हाईकोर्ट की टिप्पणियां
कोर्ट ने पैरोल देते हुए तीन टिप्पणियाँ कीं:
1. जेलबंदी व्यक्ति भी किसी के पिता हैं: न्यायमूर्ति भारती डांगरे और न्यायमूर्ति मंजूषा देशपांडे की पीठ ने कहा कि पैरोल दोषियों को सशर्त रिहाई देता है ताकि वे अपनी व्यक्तिगत और पारिवारिक जिम्मेदारियों को पूरा कर सकें।
2. मानसिक स्थिरता के लिए पैरोल आवश्यक: कोर्ट ने कहा कि पैरोल मानसिक स्थिरता बनाए रखने और भविष्य के लिए उम्मीद की भावना को कायम रखने में मदद करता है।
3. पिता और पुत्र मिलने के हकदार: हाईकोर्ट ने कहा कि दुख के साथ-साथ खुशी भी एक भावना है। अगर शादी का जश्न मनाने के लिए पैरोल मिल सकता है, तो इस मामले में भी दोषी को राहत मिलनी चाहिए।
विरोधी पक्ष का तर्क
इससे पहले, विरोधी पक्ष के वकील ने पैरोल का विरोध किया, यह तर्क देते हुए कि पैरोल आम तौर पर आपात स्थितियों में दिया जाता है और फीस का इंतजाम करने और बेटे को विदाई देने के लिए पैरोल का आधार नहीं बन सकता।
याचिकाकर्ता को 10 दिन की पैरोल
हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को 10 दिन की पैरोल दी और कहा कि “यह खुशी का अवसर है, और एक बेटा पिता के आशीर्वाद के साथ विदाई पाने का हकदार है। हम नहीं चाहते कि उसे उस पल से वंचित किया जाए जो एक पिता होने के नाते उसके लिए गर्व की बात है।”