भीलवाड़ा में बैल पूजा और खेखरा उत्सव
भीलवाड़ा जिले के ग्रामीण क्षेत्रों, विशेष रूप से बड़ी हरणी में, अन्नकूट के दिन पर बैल पूजा का आयोजन किया जाता है। इस उत्सव को खेखरा उत्सव के नाम से जाना जाता है।
ग्रामीण बैलों को आकर्षक चित्रों और सजावट से सुशोभित करते हैं। उन्हें नहलाया-धुलाया जाता है, नई रस्सियाँ और घुंघरू बाँधे जाते हैं।
सांझ ढलते ही, मंदिर के बाहर बैलों की विधिवत पूजा की जाती है। इसके बाद, ग्रामीण इन बैलों को दौड़ाते हैं, जिसे “बैल भड़काना” या “बैल भड़क महोत्सव” कहा जाता है।
बैलों को आतिशबाजी और पटाखों की आवाज़ से भड़काया जाता है, जिससे वे अपनी अधिकतम गति से दौड़ते हैं। यह अनुष्ठान ग्रामीणों के बीच हर्षोल्लास और शक्ति प्रदर्शन का अवसर होता है।
कृषि प्रधान देश होने के कारण, भारत में बैलों का कृषि कार्यों में महत्वपूर्ण स्थान है। बैल पूजा ग्रामीणों के लिए बैलों के प्रति आभार व्यक्त करने और उनकी ताकत का जश्न मनाने का एक तरीका है।
हालांकि आधुनिक युग में बैलों की जगह ट्रैक्टरों ने ले ली है, लेकिन बड़ी हरणी और आसपास के गाँवों में खेखरा उत्सव एक लोकप्रिय परंपरा बनी हुई है। यह लगभग 200 वर्षों से मनाया जा रहा है, और ग्रामीण इसे बड़े उत्साह के साथ जारी रखते हैं।