गायों और बैलों की दिवाली
दीपावली के दूसरे दिन को गाय और बैलों का त्योहार माना जाता है। पांच दिवसीय उत्सव के इस दिन को “गोवर्धन पूजा” के रूप में मनाया जाता है, जहां गाय और बैलों की पूजा की जाती है।
गांवों में, गायों और बैलों को रंगीन कपड़ों से सजाया जाता है। उनके सींगों को चमकीले रंगों से रंगा जाता है और उनके पैरों और गर्दन पर घुंघरू बांधे जाते हैं। उनकी नकेल और रस्सियां भी नई बनाई जाती हैं।
गाय और बैलों को भगवान का दर्जा दिया जाता है और उनके साथ परिवार के सदस्यों जैसा व्यवहार किया जाता है। पूजा से पहले, उन्हें नहलाया जाता है और साफ-सुथरा किया जाता है। पूजा में, उन्हें चावल, गुड़ और फूल चढ़ाए जाते हैं।
भीलवाड़ा में, गायों और बैलों को सजाने के लिए सजावटी सामग्री की दुकानें सजी हुई हैं। बाजार में घुंघरू, सायरन बेल, रंगीन रस्सियां, सजावटी पट्टे और अन्य सामानों की मांग है। ये सामान गुजरात के भावनगर और राजस्थान के अजमेर से मंगाए जाते हैं।
ग्रामीण आज के दिन इन सजावटी सामानों की लाखों रुपये की खरीददारी करते हैं। वे मानते हैं कि गायों और बैलों को सजाने से उन्हें सम्मान और शुभकामनाएं मिलती हैं।
एक ग्रामीण, कैलाश ने कहा, “यह गायों का त्योहार है। हम उनके लिए मोरिया, रस्सी और घुंघरू लाने आए हैं। हम उन्हें नहलाकर और सजाकर उनकी पूजा करेंगे। यह उनका दिन है।”
एक ग्रामीण महिला ने बताया, “अन्नकुट के दिन, हम गायों और भैंसों की पूजा करते हैं। हम लापसी पूड़ी बनाते हैं, उन्हें खिलाते हैं और उनकी अच्छी देखभाल करते हैं। वे हमारे परिवार के सदस्य हैं।”
व्यापारी अभिषेक अग्रवाल ने कहा, “ये सजावटी सामान बैलों और गायों को भड़काने से पहले उपयोग किए जाते हैं। हम भी पूरे साल इस दिन का इंतजार करते हैं।”
ग्रामीणों के अनुसार, गायों और बैलों को सजाने की परंपरा कई पीढ़ियों से चली आ रही है और वे इसे आज भी निभाते हैं।