राजस्थान पंचायत और शहरी निकाय चुनावों को एक साथ कराने की चुनौतियां
राजस्थान में पंचायतीराज संस्थाओं और शहरी निकायों के चुनाव एक साथ कराना एक जटिल कार्य है जो कई कानूनी अड़चनों में उलझा हुआ है।
कानूनी बाधाएँ:
* संवैधानिक प्रावधान: संविधान का अनुच्छेद 243 पंचायतीराज और शहरी निकायों के लिए 5 साल का कार्यकाल निर्धारित करता है, जिसे टाला नहीं जा सकता।
* सुप्रीम कोर्ट के फैसले: सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि ओबीसी के राजनीतिक पिछड़ेपन को प्रमाणित करने के लिए एक समर्पित आयोग होना चाहिए, जिसके पास मात्रात्मक डेटा हो। राजस्थान में अभी तक इस दिशा में कोई प्रगति नहीं हुई है।
* राज्य सरकार की सीमित शक्तियाँ: राज्य सरकार संविधान को नहीं बदल सकती और न ही 73वें और 74वें संविधान संशोधन से निर्धारित कार्यकाल प्रावधानों को संशोधित कर सकती है।
प्रायोगिक बाधाएँ:
* चुनाव टालना: एक साथ चुनाव कराने के लिए आधे से अधिक पंचायतों के चुनावों को टालना होगा।
* बाउंड्री बदलाव: जनगणना रुकने के कारण बाउंड्री बदलाव या सीमांकन पर विचार नहीं किया जा सकता है, जो चुनावों को टालने का एक संभावित विकल्प है।
* संचालन समिति प्रस्ताव: सरपंच संघ ने एक संचालन समिति बनाने का प्रस्ताव दिया है, लेकिन हाईकोर्ट ने पहले मध्य प्रदेश में इसी तरह के प्रयोग पर रोक लगा दी थी।
सरकार की प्रतिक्रिया:
राज्य सरकार एक कैबिनेट उप-समिति बनाने जा रही है जो एक साथ चुनाव कराने के लिए कानूनी बाधाओं को दूर करने के तरीकों का पता लगाएगी। सरकार जनता की राय भी मांग सकती है और जनगणना के पूरा होने पर बाउंड्री बदलाव पर विचार कर सकती है।
संभावित समयरेखा:
* जनवरी 2025: 6975 ग्राम पंचायतों का कार्यकाल समाप्त।
* मार्च 2025: 704 ग्राम पंचायतों का कार्यकाल समाप्त।
* अक्टूबर 2025: 3847 ग्राम पंचायतों का कार्यकाल समाप्त।
* दिसंबर 2025: 21 जिला परिषदों और 222 पंचायत समिति सदस्यों का कार्यकाल समाप्त।