अजमेर दरगाह में मंदिर के दावे पर आज कोर्ट में सुनवाई
अजमेर, [दिनांक]: अजमेर स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के नीचे गर्भगृह में शिव मंदिर होने के दावे को लेकर आज कोर्ट में महत्वपूर्ण सुनवाई होगी। पिछली सुनवाई में दरगाह कमेटी ने अदालत से जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा था।
दरगाह कमेटी ने याचिका का विरोध करते हुए कहा है कि वादी की ओर से दायर याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। इस पर कोर्ट ने हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता से जवाब मांगा था, जिसे उन्होंने पेश कर दिया है। आज दरगाह कमेटी अपना जवाब कोर्ट में पेश करेगी।
उल्लेखनीय है कि इससे पहले यह सुनवाई 19 अप्रैल को होनी थी, लेकिन बिजयनगर कांड के विरोध में अजमेर बंद के कारण जिला बार एसोसिएशन के समर्थन के चलते सुनवाई स्थगित कर दी गई थी।
हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने दरगाह में मंदिर होने का दावा करते हुए याचिका दायर की है, जिसके जवाब में दरगाह कमेटी ने याचिका को खारिज करने की मांग करते हुए कोर्ट में प्रार्थना पत्र दिया है।
वहीं, अजमेर दरगाह से जुड़ी अंजुमन कमेटी ने भी इस मामले में हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की है।
विष्णु गुप्ता के दावे के तीन आधार:
विष्णु गुप्ता ने दावा किया है कि उनके पास 1250 ईस्वी की लिखी संस्कृत पुस्तक ‘पृथ्वीराज विजय’ है, जिसका हिंदी अनुवाद वे कोर्ट में पेश करेंगे। इस पुस्तक में अजमेर के इतिहास का वर्णन है।
गुप्ता ने आगे कहा कि ‘वर्शिप एक्ट’ केवल मस्जिद, मंदिर, गिरजाघर और गुरुद्वारे पर लागू होता है, जबकि अजमेर दरगाह ‘वर्शिप एक्ट’ के दायरे में नहीं आती, क्योंकि यह एक धार्मिक स्थल है, जिसे कानून की नजर में अधिकृत धार्मिक स्थल माना जाता है।
उन्हें एसपी वंदिता राणा के निर्देश पर सुरक्षा मुहैया कराई गई है।
कौन हैं विष्णु गुप्ता?
हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने सिविल कोर्ट में अजमेर दरगाह में संकट मोचन महादेव मंदिर होने का दावा करते हुए याचिका दायर की है, जिसे 27 नवंबर 2024 को सिविल कोर्ट ने स्वीकार कर लिया था। कोर्ट ने इस मामले में अल्पसंख्यक मंत्रालय, दरगाह कमेटी अजमेर और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) को नोटिस भेजा था। इसके बाद अंजुमन कमेटी, दरगाह दीवान, गुलाम दस्तगीर अजमेर, ए इमरान बैंगलोर और राज जैन होशियारपुर पंजाब ने अपने आप को पक्षकार बनाने की अर्जी लगाई थी।
याचिका में रिटायर्ड जज हरबिलास सारदा की 1911 में लिखी पुस्तक ‘अजमेर: हिस्टॉरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव’ का हवाला देते हुए दरगाह के निर्माण में मंदिर का मलबा होने का दावा किया गया है, साथ ही गर्भगृह और परिसर में एक जैन मंदिर होने की बात कही गई है। इस मामले में अब तक दो सुनवाई हो चुकी हैं।