राजस्थान का गणगौर पर्व: शिव-पार्वती को समर्पित, 263 साल से अकेली गणगौर माता की पूजा।

जयपुर में गणगौर पर्व की धूम, महिलाओं ने गोविंद देव जी मंदिर से जल भरकर किया पूजन

जयपुर, [दिनांक] – राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक गणगौर पर्व जयपुर में धूमधाम से मनाया जा रहा है। भगवान शिव और मां पार्वती को समर्पित यह त्योहार होली के दूसरे दिन से शुरू होकर 16 दिनों तक चलता है। विशेष रूप से कुंवारी कन्याओं और महिलाओं का यह त्योहार जयपुर की चारदीवारी में उत्साहपूर्वक मनाया गया।

महिलाओं ने सजधज कर पहले गोविंद देव जी मंदिर के कुएं से गाजे बाजे के साथ जल भरकर लाया। इसके बाद सामूहिक रूप से गणगौर का पूजन किया गया। पौराणिक मान्यता के अनुसार चैत्र शुक्ल तृतीया को राजा हिमाचल की पुत्री गौरी का विवाह भगवान शिव से हुआ था, जिसकी स्मृति में यह पर्व मनाया जाता है।

त्योहार की शुरुआत में कन्याएं होलिका दहन की राख से गोबर के आठ पिंड बनाती हैं और उन्हें दूब पर रखकर रोज पूजा करती हैं। दीवार पर काजल और रोली का टीका लगाया जाता है। शीतलाष्टमी तक यह क्रम चलता है। इसके बाद मिट्टी से ईसर-गणगौर की मूर्तियां बनाकर पूजन किया जाता है।

गणगौर पर्व न केवल राजस्थान बल्कि जहां-जहां मारवाड़ी समुदाय के लोग रहते हैं, वहां भी धूमधाम से मनाया जाता है।

जयपुर में 263 सालों से गणगौर की अकेले पूजा

जयपुर में गणगौर माता की 263 सालों से अकेले पूजा की जा रही है। सामान्य तौर पर गणगौर (माता पार्वती) की पूजा ईसरजी (शिवजी) के साथ संयुक्त रूप से की जाती है, लेकिन जयपुर में ऐसा नहीं होता। त्योहार के दौरान पूरे जयपुर में गणगौर की सवारी अकेले ही निकाली जाती है।

राजस्थान की राजधानी जयपुर में गणगौर उत्सव दो दिन तक धूमधाम से मनाया जाता है। इस अवसर पर सरकारी कार्यालयों में आधे दिन का अवकाश रहता है।

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