कार्तिक मास की नवमी, आंवला नवमी या अक्षय नवमी के पवित्र अवसर पर, जिले और आसन्न ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं ने श्रद्धा के साथ आंवला वृक्ष की पूजा-अर्चना की।
सुबह से ही महिलाएं स्नानादि से निवृत्त होकर आंवला वृक्ष के समीप पहुंचीं। उन्होंने वृक्ष के चारों ओर साफ-सफाई की और उसकी जड़ों में शुद्ध जल अर्पित किया। इसके पश्चात, कच्चा दूध और पूजन सामग्री से वृक्ष का विधिवत पूजन किया गया।
महिलाओं ने वृक्ष के तने पर कच्चा सूत या मौली लपेटी और परिक्रमा की। पंडित रमेश शर्मा ने बताया कि हिंदू संस्कृति में त्योहारों और पूजा का अत्यधिक महत्व है, और विभिन्न तिथियों पर विशिष्ट पूजा विधान निर्धारित किए गए हैं।
आंवला नवमी को कार्तिक शुक्ल मास की नवमी के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन स्नान, पूजन, तर्पण और अन्नदान से अक्षय फल प्राप्त होता है। पंडित शर्मा ने एक प्राचीन कथा सुनाई, जिसके अनुसार माता लक्ष्मी ने भगवान शंकर और विष्णु की एक साथ पूजा करने की इच्छा की। चूंकि विष्णु को तुलसी प्रिय है और शिव को बेलपत्र, लक्ष्मी ने उस वृक्ष की पूजा की जिसमें दोनों वृक्षों के गुण विद्यमान थे – आंवला।
उस समय कार्तिक की नवमी तिथि थी, और तब से इस दिन आंवला नवमी के रूप में मनाया जाता है, जिसमें सुख, समृद्धि, सफलता और उत्तम स्वास्थ्य का वरदान मांगा जाता है।