भीलवाड़ा में अन्नकूट पर गधों की अनोखी पूजा, कुम्हार समाज की आजीविका का सहारा

अन्नकूट महोत्सव और मंडल कस्बे में गधा पूजा

दीपावली के अगले दिन देश भर में अन्नकूट महोत्सव मनाया जाता है। इस शुभ अवसर पर, आम तौर पर गाय और बैलों की पूजा की जाती है, कुछ क्षेत्रों में ट्रैक्टर और खेती में उपयोग होने वाले उपकरणों की भी पूजा की जाती है।

हालाँकि, राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के मंडल कस्बे में, कुम्हार समुदाय एक अनूठी परंपरा का पालन करता है। वे बड़े उत्साह के साथ गधों की पूजा करते हैं।

परंपरा की उत्पत्ति

ग्रामीणों के अनुसार, गधों की पूजा इसलिए की जाती है क्योंकि वे किसानों के लिए बैलों की तरह ही महत्वपूर्ण थे। अतीत में, जब परिवहन के साधन सीमित थे, गधों का उपयोग सामानों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए किया जाता था। जैसे बैल खेतों की जुताई करते हैं, वैसे ही गधे तालाबों से घरों तक मिट्टी ढोते थे। इसलिए, गधे को रोजगार का एक महत्वपूर्ण साधन माना जाता है।

पूजा का आयोजन

मंडल के प्रताप नगर इलाके में, गधों को नहलाया-धुलाया जाता है और उन्हें सजाया जाता है। उन्हें रंग-बिरंगे कपड़ों और मालाओं से सजाया जाता है। इसके बाद, उन्हें एक चौक में लाया जाता है, जहाँ एक पंडित उनकी पूजा करते हैं और उन्हें मीठे भोजन का भोग लगाते हैं। फिर, उनके पैरों में पटाखे बांधे जाते हैं और उन्हें दौड़ाया जाता है। गधे भागते हैं और उनके पीछे लोग उत्साह से उनका पीछा करते हैं।

त्यौहार का महत्व

मंडल सहित आसपास के गाँवों से लोग इस अनोखे उत्सव को देखने के लिए इकट्ठा होते हैं। यह उत्सव कुम्हार समुदाय के लिए गधों के महत्व को सम्मानित करता है और यह उनकी आजीविका में उनके योगदान को स्वीकार करता है। यह सदियों पुरानी परंपरा ग्रामीण जीवन और समुदाय की एकता की विरासत को जीवंत रखती है।

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