दोहरी दीपावली का उत्सव और आतिशबाजी
इस वर्ष, दो दीपावलियों के संयोग को छोड़कर, बीकानेरवासियों ने दोनों दिनों जमकर आतिशबाजी का लुत्फ उठाया। हालांकि, 1 नवंबर को 31 अक्टूबर की तुलना में पटाखों की आवाज़ अधिक तेज थी।
बाजारों में रौनक चरम पर रही। दुकानदारों ने दो दीपावलियों का लाभ उठाकर घरों और प्रतिष्ठानों पर अलग-अलग दिन पूजा की। वहीं, शनिवार सुबह से घरों के सामने गोवर्द्धन पूजा का सिलसिला शुरू हो गया।
अमावस्या के दो दिन होने के कारण, बीकानेर में भी दो दिन तक दीपावली की धूमधाम पूरी तरह से दिखाई दी। पहले दिन उत्सव का स्तर कुछ कम था, लेकिन दूसरे दिन बाजारों और मोहल्लों में हर जगह खुशियों का माहौल था।
मिठाई की दुकानों से लेकर बर्तनों की दुकानों तक, हर जगह लोगों की भीड़ नज़र आई। धनतेरस के अलावा, लोग दीपावली के दिन भी बर्तन खरीदते हैं। दोपहर तक रेडीमेड कपड़ों की दुकानों पर भी भारी भीड़ रही।
पुराने शहर में, अधिकांश लोगों ने दीपावली 1 नवंबर को मनाई। जिन्होंने 31 अक्टूबर को दीपावली मनाई, उन्हें गोवर्द्धन पूजा के लिए एक दिन और रुकना पड़ा। ऐसे लोगों ने दिवाली पूजा एक ही बार की, लेकिन आतिशबाजी दोनों दिनों जमकर की।
बच्चों ने दोहरी दीपावली का सबसे अधिक आनंद लिया। लगातार दो दिनों तक आतिशबाजी की गई।
करोड़ों रुपये की आतिशबाजी
एक अनुमान के अनुसार, बीकानेर में दो दिनों में करोड़ों रुपये की आतिशबाजी फूंकी गई। आतिशबाजी व्यवसायी वीरेंद्र किराडू ने बताया कि बीकानेर में बनने वाली आतिशबाजी का बाजार एक से डेढ़ करोड़ रुपये है, लेकिन बाहर से आने वाली आतिशबाजी को मिलाकर यह बाजार करीब दस करोड़ रुपये का है।
पहले जहां घरों में 500 से 1000 रुपये तक के पटाखे आते थे, अब आंकड़ा आमतौर पर लगभग 5000 रुपये तक पहुंच गया है।
रातभर चलती आतिशबाजी
आतिशबाजी का यह दौर पूरी रात चला। बम, सुतली बम, चकरी, अनार के साथ-साथ बाजार में कई नए तरह के पटाखे भी आए हैं। अनार भी अब बदल गई है। पहले जहां अनार सामान्य रोशनी देती थी, वहीं अब अनार से विभिन्न प्रकार के सितारे निकलते हैं। इसी तरह, आसमान में जाकर फटने वाले तीर भी शानदार दृश्य प्रस्तुत करते हैं। शुक्रवार की रात को आसमान ऐसे ही नजारों से भरा हुआ था।
प्रतिष्ठानों पर सुविधा
दो दीपावलियों के होने से व्यापारियों को काफी सहूलियत रही। दुकानदारों का कहना है कि उन्होंने एक दिन घर पर और एक दिन प्रतिष्ठान पर दीपावली की पूजा की। आम तौर पर, घर और प्रतिष्ठान पर पूजा करते हुए त्योहार निकल जाता था। इस बार यह सुविधा मिली कि घर और प्रतिष्ठान पर अलग-अलग दिन आराम से पूजा हुई।