मा沉默 साधना: संस्कार की निशानी या चरित्रहीनता का प्रमाण?

दशकों से, भारतीय समाज में महिलाओं की चुप्पी को सदाचार और संस्कार का प्रतीक माना जाता है। हालांकि, जैसे ही एक महिला अपनी आवाज उठाती है और अपनी राय व्यक्त करती है, वही समाज उसके चरित्र पर सवाल उठाने लगता है।

यह एक विरोधाभासी स्थिति है जो महिलाओं को दुविधा में डालती है। यदि वे चुप रहती हैं, तो उन्हें विनम्र और संस्कारी समझा जाता है, लेकिन जब वे बोलती हैं, तो उन्हें विद्रोही और ढीठ माना जाता है।

यह दोहरा मापदंड महिलाओं को अपने विचारों को व्यक्त करने और समाज में सार्थक योगदान देने से रोकता है। यह उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाता है और उनके अधिकारों का हनन करता है।

आवश्यक है कि समाज इस हानिकारक धारणा को चुनौती दे कि मौन ही गुण है। हमें महिलाओं को उनकी आवाज उठाने और अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। उनकी राय को सम्मान और गरिमा के साथ सुनना हमारा कर्तव्य है, न कि उनके चरित्र पर संदेह करना।

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