सरकार जन कल्याण के लिए निजी संपत्ति का अधिग्रहण कर सकती है या नहीं? सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में मंगलवार को 9 न्यायाधीशों की पीठ के बहुमत फैसले में स्पष्ट किया है कि हर निजी संपत्ति को सामुदायिक संपत्ति नहीं कहा जा सकता। सरकार केवल कुछ विशिष्ट संसाधनों को ही सामुदायिक संसाधन मानकर सार्वजनिक हित में उपयोग कर सकती है।
मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 9 न्यायाधीशों की पीठ में से 7 न्यायाधीशों ने इस फैसले का समर्थन किया है। सुप्रीम कोर्ट ने 1978 में न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर द्वारा दिए गए फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि सभी निजी स्वामित्व वाले संसाधनों को राज्य द्वारा अधिग्रहित किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पहले का फैसला विशुद्ध रूप से आर्थिक, समाजवादी विचारधारा से प्रेरित था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हालांकि, राज्य सरकारें उन संसाधनों पर दावा कर सकती हैं जो भौतिक हैं और सामुदायिक हित के लिए समाज द्वारा रखे जाते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पीछे दिए गए चार मुख्य तर्क हैं:
1. 1960 और 70 के दशक में समाजवादी अर्थव्यवस्था की ओर झुकाव था, लेकिन 1990 के दशक से बाजार उन्मुख अर्थव्यवस्था की ओर ध्यान केंद्रित किया गया।
2. भारत की अर्थव्यवस्था की दिशा किसी विशेष प्रकार की अर्थव्यवस्था से अलग है। बल्कि इसका उद्देश्य विकासशील देश की उभरती चुनौतियों का सामना करना है।
3. पिछले 30 सालों में गतिशील आर्थिक नीति अपनाने से भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बन गया है।
4. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह न्यायमूर्ति अय्यर के इस दर्शन से सहमत नहीं है कि निजी व्यक्तियों की संपत्ति सहित हर संपत्ति को सामुदायिक संसाधन कहा जा सकता है।