विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शनिवार को कहा कि नई दिल्ली अधिक से अधिक देशों से दोस्ती करने का इरादा रखती है, जिससे यह खुद को एक वैश्विक मित्र के रूप में स्थापित कर सके। भारत का ‘विश्वामित्र’ बनने का उद्देश्य पूरी दुनिया में दोस्ती बढ़ाना है। उन्होंने कहा कि आज की उभरती हुई बहु-शक्ति दुनिया में मित्रता एकतरफा नहीं रह गई है। उन्होंने कहा कि कुछ वैश्विक साझेदार (देश) विश्व के अन्य साझेदारों की तुलना में अधिक जटिल हो सकते हैं, क्योंकि वे हमेशा आपसी सम्मान की संस्कृति या कूटनीतिक शिष्टाचार के शिष्टाचार को साझा नहीं कर सकते हैं। जयशंकर ने कहा कि एक राष्ट्र की स्वतंत्रता को दूसरे देश के लिए हस्तक्षेप माना जा सकता है। अंतर्राष्ट्रीय साझेदारों के आकलन में संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के प्रति संवेदनशीलता आवश्यक बनी हुई है। विदेश मंत्री ने दिल्ली के इंडिया हैबिटेट सेंटर में ये बातें कहीं। वे यहां लेखक श्रीराम चौलिया की ‘फ्रेंड्स: इंडियाज क्लोजेस्ट स्ट्रैटेजिक पार्टनर्स’ किताब के विमोचन के मौके पर पहुंचे थे। एक के लिए स्वतंत्रता, दूसरे के लिए हस्तक्षेप जयशंकर ने कहा, ‘हमने समय-समय पर अपने घरेलू मुद्दों पर टिप्पणियाँ देखी हैं। हालाँकि, दूसरे पक्ष (देश) को शायद ही वही शिष्टाचार दिया जाता है। जो एक के लिए स्वतंत्रता है, वह दूसरे के लिए हस्तक्षेप बन सकता है। तथ्य यह है कि संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता जैसी संवेदनशीलताएं हमेशा भागीदारों (साझेदारों) के मूल्यांकन में एक वजह होंगी।’ भारत विश्वामित्र है, रूढ़िवादी सभ्यता नहीं उन्होंने कहा कि नई दिल्ली खुद को एक वैश्विक मित्र के रूप में स्थापित करते हुए अधिक से अधिक देशों से दोस्ती करने का इरादा रखती है। भारत का ‘विश्वामित्र’ बनने का उद्देश्य पूरी दुनिया में दोस्ती बढ़ाना है। उन्होंने कहा कि इस तरह की दोस्ती विकसित करने के लिए सांस्कृतिक और ऐतिहासिक कारण थे, जिसमें यह तथ्य भी शामिल है कि भारत एक ‘रूढ़िवादी सभ्यता’ नहीं है। दुनिया से जुड़ने की भारत की क्षमता उसके आत्मविश्वास में योगदान देती है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में आए तीन बदलाव जयशंकर ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में तीन बदलाव आए हैं। पहला यह कि QUAD साझेदारी से अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया को लाभ हुआ है, इन देशों ने ऐतिहासिक झिझक को दूर किया है। दूसरा यह कि यूएई-इज़राइल के साथ भारत के व्यापक संबंध विकसित हो रहे हैं। जयशंकर ने कहा कि पिछले दशक में रूस-फ्रांस के बहुध्रुवीयता के बयानों पर सभी बदलाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की व्यक्तिगत रुचि और नेतृत्व का नतीजा हैं। इसका श्रेय प्रधानमंत्री को जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि याद रखें कि इनमें से कम से कम तीन ने तीन दशकों में एक भी उच्च स्तरीय यात्रा नहीं देखी थी। अन्य मामलों में या तो हम पर अपनी वार्ता को सीमित करने का दबाव था या कुछ मामलों में लंबे समय से चली आ रही वैचारिक शंकाओं को दूर करना था। ………………………………………………………. जयशंकर के बयानों से संबंधित अन्य खबरें…. सीमा तनाव कम करना अगला कदम: जयशंकर सीमा पर सैनिकों की वापसी पहले कदम के तौर पर बताते हुए विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि तनाव कम करना अगला चरण होगा। मुंबई में 27 अक्टूबर को प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए विदेश मंत्री ने कहा कि दोनों देशों के बीच तनाव तब ही कम होगा जब भारत को यकीन हो जाएगा कि चीन भी यही चाहता है। तनाव कम करने के बाद सीमा प्रबंधन पर चर्चा की जाएगी। पूरी खबर पढ़ें… जयशंकर का चीन के विदेश मंत्री से मिलना: एलएसी और समझौतों का सम्मान ही संबंधों की कुंजी विदेश मंत्री एस जयशंकर और चीन के विदेश मंत्री वांग यी की लाओस में महत्वपूर्ण बैठक हुई। इसमें दोनों नेताओं के बीच भारत-चीन सीमा विवाद पर चर्चा हुई। जयशंकर ने चीन के विदेश मंत्री से एलएसी और पहले हुए समझौतों का सम्मान करने की बात कही। जयशंकर ने कहा कि संबंधों को स्थिर करना दोनों देशों के हित में है। पूरी खबर पढ़ें…
जयशंकर: कुछ देश दूसरों से जटिल, भारत मित्रता चाहता है
