कैथल: कलासर गांव की पूजा आर्या बनीं प्रेरणा, नेट फार्मिंग से कमा रहीं लाखों
कैथल, हरियाणा: कैथल जिले के कलासर गांव की एक महिला किसान पूजा आर्या, आज इलाके की बहू-बेटियों के लिए प्रेरणास्रोत बन गई हैं। मात्र चार एकड़ जमीन पर नेट फार्मिंग के जरिए, पूजा अपने पति के साथ मिलकर सालाना 25 से 30 लाख रुपए की आमदनी कर रही हैं।
एक समय था, जब पूजा का परिवार छोटी सी जमीन के चलते दिहाड़ी-मजदूरी करने को मजबूर था। पति दिहाड़ी पर जाते थे और पूजा घर संभालती थीं, जिससे परिवार का गुजारा मुश्किल से होता था। पूजा बताती हैं कि उस मुश्किल दौर में, उनके पति ने उन्हें नेट फार्मिंग के बारे में बताया। जिसके बाद दोनों ने मिलकर अपनी जमीन पर नेट लगवाया और खीरे व अन्य सब्जियों की खेती शुरू की।
शुरुआत में, प्रशिक्षण के लिए उन्हें कैथल कृषि विज्ञान केंद्र व अन्य संस्थानों में जाना पड़ता था। उस समय, समाज के लोग उन्हें ताने भी मारते थे, लेकिन पूजा ने हार नहीं मानी। उन्होंने लोगों की बातों को अनसुना किया और अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित रखा।
2019 में नेट फार्मिंग की शुरुआत करते हुए, पूजा ने बताया कि उस समय उनकी आर्थिक स्थिति काफी खराब थी। यहां तक कि उनका बैंक खाता भी नहीं था। महिलाओं के लिए मुफ्त नेट फार्मिंग प्रशिक्षण की जानकारी मिलने पर, उन्होंने कैथल से यह प्रशिक्षण लिया। आर्थिक तंगी के कारण, शुरुआत में उन्होंने केवल एक नेट हाउस लगाया था, लेकिन आज उनके पास तीन नेट हाउस हैं और अच्छी आमदनी हो रही है।
पूजा के नेट हाउस में तैयार खीरा, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और बीकानेर की मंडियों तक जाता है। फसल की बिक्री के लिए वे आढ़तियों से बातचीत करती हैं और सीधे मंडियों में फसल भेज देती हैं। आढ़ती उनके खाते में भुगतान कर देते हैं।
12वीं कक्षा तक पढ़ी पूजा बताती हैं कि जब वे प्रशिक्षण के लिए शहर जाती थीं, तो लोग उन्हें डॉक्टर या साइंटिस्ट बनने के सपने देखने वाली बताते थे। लेकिन आज, वही लोग उनके काम की सराहना कर रहे हैं।
कृषि क्षेत्र में मिली सफलता के लिए पूजा को राज्यपाल, मुख्यमंत्री और जिला स्तर पर कई बार सम्मानित किया जा चुका है। उनका मानना है कि हर किसी को किसी न किसी क्षेत्र में आगे बढ़कर अपने आप को साबित करना चाहिए और सफलता पाने के लिए लगातार प्रयास करते रहना चाहिए।
पूजा के दो बेटे हैं, जो तीसरी और दूसरी कक्षा में पढ़ते हैं। बच्चों के लिए खाना खुद बनाकर, वह अपने खेत में काम करने चली जाती हैं। बच्चों के घर पहुंचने पर, या तो वे खुद या उनके पति उन्हें खाना खिला देते हैं।