भीलवाड़ा: शीतला सप्तमी पर 425 साल पुरानी अनूठी परंपरा, ‘मुर्दे’ की सवारी निकाली गई
भीलवाड़ा, : भीलवाड़ा शहर में आज शीतला सप्तमी के अवसर पर एक अनोखी परंपरा निभाई गई। होली के सात दिन बाद यहां 425 सालों से ‘मुर्दे की सवारी’ निकाली जाती है, जिसमें एक जीवित व्यक्ति को मुर्दा बनाकर उसकी अंतिम यात्रा निकाली जाती है। इस अनूठी परंपरा को ‘मुर्दे की सनेती’ या ‘डोल महोत्सव’ भी कहा जाता है।
शहर में डोल महोत्सव का खुमार छाया रहा। हंसी-ठिठोली, नाच-गाना और गालियों के साथ यह उत्सव मनाया गया। सर्राफा बाजार के व्यापारी आमतौर पर हर साल इस आयोजन की व्यवस्था संभालते हैं।
डोल महोत्सव आयोजन समिति के सदस्य पूनम सिसोदिया ने बताया कि सर्राफा बाजार में घास-फूस का पुतला तैयार किया जाता है। इस पुतले को तैयार करने के बाद चित्तौड़वालों की हवेली ले जाया जाता है।
पद्मश्री से सम्मानित स्वांग कलाकार जानकीलाल भांड ने बताया कि सर्राफा बाजार में पुतला तैयार करने के बाद शहर के पंच पटेल इकट्ठा होते हैं। ढोल नगाड़े बजाते हुए पुतला और झंडा लेकर बड़ा मंदिर पहुंचते हैं। यहां से चित्तौड़वालों की हवेली तक गाजे बाजे के साथ पुतला ले जाया जाता है। इस दौरान डोल महोत्सव के लिए चंदा इकट्ठा किया जाता है।
हवेली पर ही अंतिम यात्रा के लिए किसी भी व्यक्ति को मुर्दा बनाकर अर्थी पर लेटा दिया जाता है। इसके बाद चित्तौड़वालों की हवेली से अंतिम यात्रा शुरू होती है। इस यात्रा में बड़ी संख्या में शहरवासी शामिल होते हैं। ऊंट, घोड़े और ढोल नगाड़े लेकर शोर-शराबे से अंतिम यात्रा निकलती है।
पूनम सिसोदिया ने बताया कि अर्थी पर लेटने वाला व्यक्ति भीड़ में शामिल कोई भी हो सकता है। हर साल मुर्दा बदल जाता है। अंतिम यात्रा के दौरान लोग नगाड़े बजाते हैं, शोर करते हैं, सीटियां बजाते हैं। मुर्दे पर गोबर-गंदगी और जूते फेंकते हैं।
जानकीलाल भांड ने बताया कि अंतिम यात्रा बड़ा मंदिर के पीछे पहुंचते-पहुंचते मुर्दा उठकर भाग खड़ा होता है। क्योंकि यहां अंतिम संस्कार किया जाता है। ऐसे में मुर्दे के भागने के बाद पुतला अर्थी पर रखा जाता है और अर्थी को जला दिया जाता है।
पूनम सिसोदिया ने बताया कि इस आयोजन के पीछे खास उद्देश्य है। अगर किसी के मन में किसी के लिए गिला-शिकवा है, मनमुटाव है तो इस दिन वह अपनी भड़ास निकाल लेता है।
उल्लेखनीय है कि पूरे प्रदेश में धुलंडी का पर्व होलिका दहन के दूसरे दिन मनाया जाता है, लेकिन भीलवाड़ा शहर में धुलंडी का पर्व होली के 7 दिन बाद शीतला सप्तमी पर मनाया जाता है। इस दिन पूरे शहर के बाजार बंद रहते हैं।