जगदगुरु रामभद्राचार्य ने कहा है कि पाकिस्तान द्वारा कब्जा किए गए कश्मीर को वापस पाने के लिए वे 1.25 करोड़ आहुतियां हनुमानजी को अर्पित करेंगे। रामभद्राचार्य ने जयपुर के लोगों से कश्मीर को वापस लेने के लिए सहयोग करने का आह्वान किया।
विद्याधर नगर स्टेडियम में आयोजित 9 दिवसीय श्री राम कथा के दूसरे दिन, शुक्रवार को रामभद्राचार्य ने कहा, “जयपुर से बहुत यजमान चाहिए। पाकिस्तान से जय चाहिए तो जयपुर का सहयोग चाहिए। चलिए हम सभी आनंद करेंगे।”
उन्होंने यह भी कहा कि राजस्थान सरकार 6 से 12वीं कक्षा तक वेद की शिक्षा देने पर विचार कर रही है। रामभद्राचार्य ने कहा, “मैं सरकार से कहूंगा कि जहां भी आवश्यकता हो, ऋग्वेद से लेकर हनुमान चालीसा तक मुझे सहयोग करना है, तो मैं भारतीय संस्कृति के लिए उपलब्ध हूं। मैं ऑनलाइन पढ़ाऊंगा। मुझे डेढ़ लाख वेद मंत्र याद हैं।”
राज्यपाल हरिभाई किसनराव बागड़ ने भी कथा को संबोधित करते हुए कहा, “जयपुर में 22 साल बाद रामभद्राचार्य राम कथा कर रहे हैं। 800 साल पहले हमारी भारतीय हिंदू संस्कृति को नष्ट करने का प्रयास किया गया था, लेकिन फिर भी हमारी संस्कृति आज भी जीवंत है और बढ़ रही है। इसे कोई खत्म नहीं कर सकता।”
उन्होंने कहा, “राजस्थान में कमल का फूल खिला है, कमल के फूल से हरि की पूजा होती है। सत्ता पक्ष के कमल के फूल से हरि की पूजा कीजिए।”
बता दें कि शनिवार से विद्याधर नगर स्टेडियम में हो रही श्री राम कथा में एंट्री पास से एंट्री बंद कर दी गई है। अब पहले आओ पहले पाओ के आधार पर प्रवेश दिया जाएगा।
जगदगुरु रामभद्राचार्य के बारे में
रामभद्राचार्य चित्रकूट में रहते हैं और उनका वास्तविक नाम गिरधर मिश्रा है। वह एक प्रवचनकार, दार्शनिक और हिंदू धर्मगुरु हैं। वे रामानंद संप्रदाय के चार जगद्गुरुओं में से एक हैं और 1988 से इस पद पर हैं।
रामभद्राचार्य चित्रकूट में जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय के संस्थापक और आजीवन कुलाधिपति हैं। उन्हें तुलसी पीठ, चित्रकूट की स्थापना का श्रेय दिया जाता है।
उन्होंने दो संस्कृत और दो हिंदी महाकाव्यों सहित कुल चार महाकाव्य लिखे हैं। उन्हें भारत में तुलसीदास के सर्वश्रेष्ठ विशेषज्ञों में गिना जाता है। 2015 में, भारत सरकार ने उन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया था।
राम जन्मभूमि मामले में रामभद्राचार्य की गवाही
पद्मविभूषण रामभद्राचार्य ने रामलला के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट में वेद और पुराणों के उद्धरण देकर गवाही दी थी। जब वह राम जन्मभूमि पक्ष के रूप में शीर्ष अदालत में उपस्थित हुए, तो उन्होंने ऋग्वेद की जैमिनीय संहिता से उदाहरण देना शुरू किया, जिसमें सरयू नदी के स्थान विशेष से दिशा और दूरी का सटीक ब्योरा देते हुए राम जन्मभूमि की दूरी बताई गई है।
अदालत के आदेश से जैमिनीय संहिता मंगाई गई और उसमें रामभद्राचार्य द्वारा बताए गए पृष्ठ को खोलकर देखा गया, तो सभी विवरण सही पाए गए। इस प्रकार रामभद्राचार्य की गवाही ने फैसले की दिशा बदल दी। न्यायाधीशों ने भी कहा कि उन्होंने उस दिन सनातनी प्रज्ञा का चमत्कार देखा है।
प्रारंभिक जीवन और अंधापन
सिर्फ दो महीने की उम्र में रामभद्राचार्य की आंखों की रोशनी चली गई थी। आज वह 22 भाषाएं जानते हैं और 80 ग्रंथों की रचना कर चुके हैं। वह न तो पढ़ सकते हैं और न ही लिख सकते हैं, और न ही ब्रेल लिपि का उपयोग करते हैं। वह केवल सुनकर सीखते हैं और अपनी रचनाओं को बोलकर लिखवाते हैं। पद्मविभूषण रामभद्राचार्य एक ऐसे संन्यासी हैं जिन्होंने अपनी विकलांगता पर विजय प्राप्त की और जगद्गुरु बने।