रणथंभौर टाइगर टी-86 की हत्या में धारदार हथियार और विस्फोटक का इस्तेमाल

रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान के बाघ टी-86 की हत्या में केवल धारदार हथियार ही नहीं, बल्कि विस्फोटक का भी इस्तेमाल किया गया था। पोस्टमार्टम करने वाली टीम को बाघ के मुंह पर बारूद के निशान मिले हैं। ऐसा अनुमान है कि बाघ को खानों में विस्फोट करने वाले बारूद से घायल किया गया था।

इंसानों द्वारा टाइगर की हत्या का राजस्थान में पहला मामला

माना जा रहा है कि इंसानों द्वारा टाइगर की हत्या का यह राजस्थान में पहला मामला है। मुख्य वन संरक्षक (सीसीएफ) अनूप के. आर. ने इंसानी हमले से बाघ की मौत पर प्राथमिकी दर्ज कराने की बात कही थी।

बाघ की मौत की दर्दनाक कहानी

बारूद के निशान मिले, 10 दिनों से कुछ नहीं खाया था:

पोस्टमार्टम करने वाले एक चिकित्सक ने गुमनाम रूप से दैनिक भास्कर को बताया कि बाघ की हालत देखकर उनकी रूह कांप गई थी। शरीर 36 घंटे से भी ज्यादा पुराना था और उस पर धारदार हथियारों के गहरे निशान थे।

वर्चस्व के लिए दूसरे बाघ से लड़ाई के निशान:

सूत्रों के अनुसार, बाघ टी-86 के पोस्टमार्टम के दौरान उसके किसी अन्य बाघ से 4-5 दिन पहले हुई लड़ाई के निशान भी मिले हैं। इस टाइगर को इलाके छूटने के बाद भूख, प्यास और अन्य बाघों के साथ लगातार संघर्ष का सामना करना पड़ रहा था।

ग्रामीणों द्वारा बारूद और धारदार हथियारों से हमला:

ऐसा अनुमान है कि जब बाघ ने भरतलाल मीणा पर हमला कर उसके शव के पास बैठा होगा, तब ग्रामीणों ने उस पर बारूद से हमला किया होगा। जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गया होगा। बाद में ग्रामीणों ने तेज धार वाले हथियारों से उस पर हमला कर मार डाला।

भूख-प्यास से कमजोर था बाघ:

सूत्रों ने बताया कि बाघ टी-86 ने पिछले 8-10 दिनों से कोई शिकार नहीं किया था। ऐसे में, यह माना जा सकता है कि वह करीब 10 दिनों से भूखा था। पोस्टमार्टम के दौरान भी उसके पेट में कुछ भी ठोस नहीं मिला।

25 से ज्यादा निशान मिले:

बाघ के शरीर पर गहरे घावों के 25 से ज्यादा निशान मिले हैं। माना जाता है कि बारूद के विस्फोट से वह अधमरा हो गया था, जिसके बाद ग्रामीणों ने उस पर तेज धार वाले हथियारों से हमला कर दिया।

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चलेगी हत्या की सही वजह:

बाघ के शव से कुछ नमूने बरेली लैब में भेजे गए हैं। अन्य नमूने जयपुर एफएसएल और डीएनए विश्लेषण के लिए बेंगलुरु भेजे गए हैं। पोस्टमार्टम रिपोर्ट से बाघ की मौत की असली वजह का पता चलेगा।

बाघ का इलाका छूटने के बाद 6 महीने से भटक रहा था:

बाघ टी-86 रणथंभौर की बाघिन लाडली (T-8) की तीसरी संतान था। वह अपने इलाके में उम्र और शक्ति में बड़े बाघों से लगातार संघर्ष का सामना कर रहा था। इलाका छूटने के बाद वह दोबारा अपना क्षेत्र नहीं ले पाया। माना जा रहा है कि लगातार भूख-प्यास और संघर्ष के कारण वह कमजोर हो गया था।

टाइगर की हत्या का राजस्थान में पहला मामला:

वन्यजीव विशेषज्ञ डॉ. धर्मेन्द्र खांडल का मानना है कि राष्ट्रीय पशु टाइगर की इंसानों द्वारा इस तरह हत्या करने का यह राजस्थान का पहला मामला है।

रणथंभौर में टाइगर की मौत का बढ़ता आंकड़ा:

बीते एक साल में रणथंभौर टाइगर रिजर्व में 14 बाघों और शावकों की मौत हो चुकी है। अधिकांश मौतें इलाके को लेकर हुए संघर्षों के कारण हुई हैं।

रणथंभौर के 25 बाघ लापता:

बीते एक साल में रणथंभौर से 25 बाघ लापता हो चुके हैं। प्राथमिकी दर्ज की गई है और लापता बाघों की जांच के लिए एक समिति बनाई गई है।

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